मैं बोलता गया हूँ वो सुनता रहा ख़ामोश
ऐसे भी मेरी हार हुई है कभी कभी
वसीम बरेलवी
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें
फ़िराक़ गोरखपुरी
मैं चुप रहता हूँ इतना बोल कर भी
तू चुप रह कर भी कितना बोलता है
फ़हमी बदायूनी
एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना
एक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते
नवाज़ देवबंदी
न जी भर के देखा न कुछ बात की!
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की!!
बशीर बद्र
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