आपातकाल पर 49 साल बाद संसद में चर्चा पर विशेष

आपातकाल भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में देखी जाती है आपातकाल 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक 21 महीने की अवधि तक थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की, नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया और सेंसरशिप लगा दी। जिसका भारत की समस्त विपक्ष ने श्री जय प्रकाश नारायण  के नेतृत्व में पूरे देश में  आंदोलन कर विरोध किया, जिस को दबाने के लिए विरोधी पार्टी के नेताओं को जेल में भी ठूँसा गया । जिस के कारण जय प्रकाक्ष नारायण जन नायक रूप में  उभरे,  यह व्यापक मानवाधिकार उल्लंघन, विपक्षी नेताओं की गिरफ़्तारी और प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के कारण हाय आपातकाल को एक काले समय रूप में याद किया जाता है ।
        लेकिन  महंगाई और काला बाज़ारी को रोकने के लिए, दुकानदारों पर रेट लिस्ट  को सख़्ती से लागू किया गया । और बढ़ती हुई जनसंख्या को क़ाबू पाने के लिए “हम दो हमारे दो”  का जागरूकता का अभियान चलाया वहीं नसवंदी की ज़ोरदार मुहिम चला कर बढ़े स्तर पर नसवंदी कर जनसंख्या पर क़ाबू पाने की कोशिश की जिस का असर आज भी हमारे समाज में दो बच्चों का प्रचलन  के रूप में पाया जा रहा है, नहीं तो आज हमारे देश की आबादी 200 करोड़ के पार होती। जनसंख्या नियंत्रण  का इतना बढ़ा काम, मानवाधिकारों के उल्लंघन ओर लोकतंत्र की हत्या के शोर में दब कर रह गया। 
        1977 के चुनावों के साथ आपातकाल का अंत हुआ, जिसमें 1971 में पाकिस्तान को हरा कर बंगला देश बनाने वाली महान नायिका के रुप में उभरी इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा।

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