महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग चौथा अंग है
“प्राणायाम”
प्राणायाम योग की श्वास (साँस) से जुड़ी हुई व्यायाम है , प्राण को जीवनी शक्ति कहा जाता है वायु (हवा) का शरीर के विभिन्न-विभिन्न जगह में उपस्थिति हिसाब से पाँच अलग-अलग नाम दिए हे :-
1. प्राण वायु
2. अपान वायु
3. समान वायु
4. उदान वायु
5. व्यान् वायु
इन पाँचो प्राणो का शरीर को तंदुरुस्त रखने अपना-अपना अलग महत्व है , प्राणायाम इन सभी प्रकार की वायु को संतुलित बनाता है ।
- "प्राण" वायु नाक से लेकर गले तक जो साँस होती है उसको प्राण वायु कहतें है इसको जीवन देने वाली शक्ति कहते हैं , गले से लेकर पेट तक वायु को उदान वायु कहते है और जो वायु प्रज्जन अंगों से लेकर नाभि के बीच रहती है उसे उदान वायु कहते है और वायु अपान वायु और उदान वायु के बीच (फेफड़ो के नीचे और नाभि के बीच) रहने वायु(हवा) को समान वायु कहते है । और जो सारे शरीर वायु व्याप्त है उसे व्यान कहते है।
इस प्रकार साँसो का गहन अध्ययन कर महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम को अष्टांग योग के चौथे अंग के रूप में शामिल किया है ।
प्राणायाम में साँस लेने को पूरक, कुम्भक, रेचक और फिर कुम्भक में बाँटा है, पूरक में साँस को अंदर खींच कर फेफड़ों में लेकर जाने को कहते है, उसके बाद साँस को कुछ देर तक रोक कर रखने को कुम्भक कहा जाता है उसके साँस को धीरे-धीरे बाहर छोड़ा जाता है उसे रेचक कहा जाता है और साँस को कुछ रोक कर ( वाहरी कुम्भक) रखा जाता है। प्राणायाम की अग्रणी अवस्था (Advance) में कुम्भक के साथ बंध लगाने की विधि है जिसके बहुत अभ्यास के वाद ही किसी परिक्षित व्यक्ति की देख रेख़ में करना चाहिए।
मुख्य प्राणायाम में अनुलोम विलोम, नाड़ी शोधन, कपालभाती, भास्त्रिका शीतली आदि प्राणायाम है
प्राणायाम से हमारे शरीर में ऑक्सीजन हर कोशिका (सैल) तक पहुँच कर हमारे खून को साफ़ करती है हमारे फेफड़ों को ताकतवर बना कर बीमारियों से बचाती है ।
प्राणायाम अभ्यास का उद्देश्य सांस को विनियमित और नियंत्रित करना भी है जिससे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।
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