महर्षि पंतजलि के अष्टांग योग का तीसरा अंग
“आसन”
महर्षि पंतजलि के अष्टांग योग का तीसरा अंग
“आसन”
योग में, आसन शारीरिक आसन हैं जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए हमारे ऋषि मुनियो ने पशुओं पक्षियों जीवन शैली और उनमें पाए जाने वाले गुणों का अध्ययन कर उनका मनुष्यों के जीवन में अपना कर उनसे होने वाले लाभों की विवेचना कर मनुष्य जाती के उपकार के लिए पेश किया है।
योगासनों के कुछ सामान्य उदाहरणों में शामिल हैं
सूर्या नमस्कार, पश्चिमओतान, ताड आसन, भुजंग आसन, शीर्ष आसन आदि बहुत सारे आसान है
जिनमे खड़े हो कर करने वाले आसन, पीठ के बल लेट कर करने वाले, पेट के बल लेट के बल लेट कर करने वाले, आगे झुकने वाले, पीछे झुकने वाले आदि अनेक आसन होते है ।
ख़ास कर आसनों करतै समय यह ध्यान रखना जरूरी तोता है की जितना समय हम आगे झुकने वाले आसन करे उतना ही समय पीछे झुकने वाले आसनो को देना चाहिए, जितना समय पेट के बल पर उतना ही पीठ के बल पर लेट करना चाहिए। इसी प्रकार दूसरे आसनों में एक दिशा में उतना ही विपरीत को झुकने वाले आसान करने चाहिए ताकि संतुलन बना रहे , याद रहे संतुलन का नाम हाय ही योग है ।
योगासन महर्षि पन्तंजलि के अष्टांग योग अभ्यास का एक अनिवार्य हिस्सा हैं, और वे लचीलेपन, संतुलन, शक्ति और समग्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।
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