रेकी या पाठ निष्फल नही

*मंत्र क्यों सिद्ध नहीं होते*रेकी परिणाम देर से क्यो? 

माधवाचार्य गायत्री के उच्च उपासक थे। वृंदावन में उन्होंने तेरह वर्ष तक गायत्री के समस्त अनुष्ठान विधिपूर्वक किये। लेकिन उन्हें इससे न भौतिक न आध्यात्मिक लाभ दिखा। वे निराश हो कर काशी गये। वहाँ उन्हें एक आवधूत मिला जिसने उन्हें एक वर्ष तक काल भैरव की उपासना करने को कहा।

उन्होंने एक वर्ष से अधिक ही कालभैरव की आराधना की। एक दिन उन्होंने आवाज सुनी "मै प्रस्ंन्न हूँ। वरदान मांगो"। उन्हें लगा कि ये उनका भ्रम है। क्योंकि सिर्फ आवाज सुनायी दे रही थी कोई दिखाई नहीं दे रहा था।
उन्होंने सुना अनसुना कर दिया। लेकिन वही आवाज फिर से उन्हें तीन बार सुनायी दी। तब 
माधवाचार्य जी ने कहा
आप सामने आकर अपना परिचय दें।मैं अभी काल भैरव की उपासना में व्यस्त हूं।

सामने से आवाज आयी "तूं जिसकी उपासना कर रहा है वह मैं ही काल भैरव हूँ"।

माधवाचार्य जी ने कहा "तो फिर सामने क्यों नहीं आते?"

काल भैरव जी ने कहा "माधवा  तुमने तेरह साल तक जिन गायत्री मंत्रों का अखंड जाप किया है उसका तेज तुम्हारे सर्वत्र चारों ओर व्याप्त है। मनुष्य रूप में उसे मैं सहन नहीं कर सकता, इसीलिए सामने नहीं आ सकता हूँ।"

माध्वाचार्य ने कहा "जब आप उस तेज का सामना नहीं कर सकते हैं तब आप मेरे किसी काम के नहीं। आप वापस जा सकते है।"

काल भैरव जी ने कहा "लेकिन मैं तुम्हारा समाधान किये बिना नहीं जा सकता हूं।"

"तब फिर ये बताइये कि  पिछले तेरह वर्षों से किया गायत्री अनुष्ठान मुझे क्यों नहीं फला?"

काल भैरव ने कहा "वो अनुष्ठान निष्फल नहीं हुए है।
उससे तुम्हारे जन्म जन्मांतरो के पाप नष्ट हुए है।"

तो अब मै क्या करूँ "फिर से वृंदावन जा कर और एक वर्ष गायत्री का अनुष्ठान कर। इससे तेरे इस जन्म के भी पाप नष्ट हो जायेंगे फिर गायत्री मां प्रसन्न होगी।"

काल भैरव ने कहा "आप या गायत्री कहां होते हैं।हम यहीं रहते हैं पर अलग रूपों में ये मंत्र जप  और कर्म कांड तुम्हें हमें देखने की शक्ति, सिद्धि देते हैं जिन्हें तुम साक्षात्कार कहते हो।"

माधवाचार्य वृंदावन लौट आये। अनुष्ठान शुुरू किया। एक दिन बृह्म मूहुर्त मे अनुष्ठान मे बैठने ही वाले थे कि उन्होंने आवाज सुनी "मै आ गयी हूँ माधव, वरदान मांगो"

"माँ" माधवाचार्य फूटफूटकर रोने लगे।

"माँ, पहले बहुत लालसा थी कि वरदान मांगू लेकिन
अब् कुछ मांगने की इच्छा  रही नही, माँ, आप जो मिल गयी हो"

"माधव तुम्हें मांगना तो पड़ेगा ही।"
"माँ ये देह, शरीर भले ही नष्ट हो जाये लेकिन इस शरीर से की गयी भक्ति अमर रहे।  इस भक्ति की आप सदैव साक्षी रहो। यही वरदान दो।"

"तथास्तु"

आगे तीन वर्षों में माधवाचार्य जी ने माधवनियम नाम का आलौकिक ग्रंथ लिखा।

*याद रखिये आपके द्वारा शुरू किये गये मंत्र जाप पहले दिन से ही काम करना शुरू कर देतै है। लेकिन सबसे पहले प्रारब्ध के पापों को नष्ट करते है। देवताओं की शक्ति इन्हीं पापों को नष्ट करने मे खर्च हो जाती है और आप अपने जप, जाप या साधना को निष्फल जान हताश हो जाते हो। जैसे ही ये पाप नष्ट होते है आपको एक आलौकिक तेज, एक आध्यात्मिक शक्ति और सिद्धि प्राप्त होने लगती है। अतः निराश न हो कर अनुष्ठान चालू 
रखें।

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