मैं एक ख़ाना-ब-दोश हूँ जिस का घर है दुनिया
सो अपने काँधे पे ले के ये घर भटक रहा हूँ
पल्लव मिश्रा
इश्क़ में फ़िक्र तो दीवाना बना देती है
प्यार को अक़्ल नहीं दिल की पनाहों में रखो
अलीना इतरत
थमे आँसू तो फिर तुम शौक़ से घर को चले जाना
कहाँ जाते हो इस तूफ़ान में पानी ज़रा ठहरे
लाला माधव राम जौहर
नहीं मालूम आख़िर किस ने किस को थाम रक्खा है
वो मुझ में गुम है और मेरे दर ओ दीवार गुम उस में
ज़फ़र गोरखपुरी
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
मुनव्वर राना
सुकूत-ए-शाम का हिस्सा तू मत बना मुझ को
मैं रंग हूँ सो किसी मौज में मिला मुझ को
अली ज़रयून
कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से
कहीं भी जाऊँ मिरे साथ साथ चलते हैं
बशीर बद्र
बच्चे मेरी उँगली थामे धीरे धीरे चलते थे
फिर वो आगे दौड़ गए मैं तन्हा पीछे छूट गया
ख़ालिद महमूद
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