चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है : योगी राज रमेश जी

वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च। अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः!

चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट होने पर भी चरित्र सुरक्षित रहता है, लेकिन चरित्र नष्ट होने पर सबकुछ नष्ट हो जाता है।

 

सत्य -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः ।
सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥


सत्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है; सत्य ही समस्त भव-विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है।

।।कृष्णम वंदे जगद्गुरु।।
कोऊ कोटिक संग्रहौ, कोऊ लाख हजार। 

मो संपति जदुपति सदा, बिपति-बिदारनहार॥ 

कोई चाहे करोड़ों की संपत्ति एकत्र कर ले, चाहे कोई लाख हजार अर्थात् दस करोड़ की संपदा प्राप्त कर ले। मुझे उससे और उसकी संपदा से कुछ भी लेना-देना नहीं है। कारण यह है कि मेरी असली संपत्ति तो यदुवंशी कृष्ण हैं, जो सदा ही विपत्तियों को विदीर्ण करने वाले हैं।

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