जो शब्दों का विचार कर आचरण करता है, वह कभी मन कल्पनाओं के मुख में नहीं पड़ता |

 शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल |
काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल ||


गुरुमुख शब्दों का विचार कर जो आचरण करता है, वह कृतार्थ हो जाता है। उसको काम क्रोध नहीं सताते और वह कभी मन कल्पनाओं के मुख में नहीं पड़ता ।

 

कॉल कहीं नहीं गया बल्कि हम चले गए
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भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ।
कालो न यातो वयमेव याताः तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ॥ 

 भोगों को हमने नहीं भोगा, बल्कि उन्होंने हमें भोग लिया। तपस्या हमने नहीं की,बल्कि हम स्वयं तप गए। काल कहीं नहीं गया बल्कि हम चले गए । तृष्णा नहीं गयी बल्कि हम जीर्ण हो गए।

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