आंसू

 

आंखों में थोड़ी सी रात ठहरी है,  
पलकों पे बैठे हैं कुछ ग़म के परिंदे।  
बात कुछ भी नहीं थी…  
बस, दिल कुछ ज़्यादा महसूस कर गया।

एक आंसू…  
बहा है आज… चुपचाप,  
जैसे कोई ख़त… बिना पते के निकल गया हो।

वो जो कहा नहीं…  
वो जो सुना नहीं…  
सब कुछ भीग गया उस एक बूंद में।

तेरा नाम भी…  
तेरी याद भी…  
और वो आख़िरी बात,  
जो दिल ने कही थी — ख़ुद से।

कभी-कभी  
आंसू भी शेर कर जाते हैं…  
बस काग़ज़ नहीं होता उनके पास।

आंसू... नमक कम करते हैं, पर कुछ रिश्तों का स्वाद बचा लेते हैं।

 

*कंचन "श्रुता"*

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