कुछ दिन तो मलाल उस का हक़ था
बिछड़ा तो ख़याल उस का हक़ था
किश्वर नाहीद
थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें
सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
यूँ बरसती हैं तसव्वुर में पुरानी यादें
जैसे बरसात की रिम-झिम में समाँ होता है
क़तील शिफ़ाई
जुदा हुए तो जुदाई में ये कमाल भी था
कि उस से राब्ता टूटा भी था बहाल भी था
नवेद रज़ा
जंगलों में सर पटकता जो मुसाफिर मर गया,
अब उसे आवाज देता कारवां आया तो क्या?
जोश मलीहाबादी
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
आसी ग़ाज़ीपुरी
कितना आसां है भूलना ख़ुद को,
बस तुझे याद कर लिया जाए.
एहतराम इस्लाम
तिरे लबों को मिली है शगुफ़्तगी गुल की
हमारी आँख के हिस्से में झरने आए हैं
आग़ा निसार
जिसे न आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ
उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है
जावेद नसीमी
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