मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
*सलीम कौसर*
शर्त सलीक़ा है हर इक अम्र में
ऐब भी करने को हुनर चाहिए
*मीर तक़ी मीर*
दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे
उदासियों से भी चेहरा खिला-खिला ही लगे
ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा ओढे़ तो दूसरा ही लगे
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे
अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे।।
*बशीर बद्र*
यह दुख नहीं की अंधेरों से सुलह की हमने
मलाल ये है कि अब सुबह की भी तलब नहीं
*परवीन शाकिर*
हुनर ये भी सीखना है मुझे,
ख़ामुशी से चीख़ना है मुझे।
*भरत ए ताराचंदानी*
सोचूँ तो सारी उम्र मोहब्बत में कट गई
देखूँ तो एक शख़्स भी मेरा नहीं हुआ
*जौन एलिया*
धूप कभी चमकेगी इस उम्मीद पे मैं
बर्फ़ के दरिया में सदियों से लेटा हूँ
*अम्बर बहराईची*
किसी से खफ़ा मैं हुआ ही नहीं
कभी मुझ को ये हक़ मिला ही नहीं
कई बार गुज़रा बराबर से मैं
उसे मेरा धोखा हुआ ही नहीं
जो दुनिया ने तय की है मेरे लिए
किए की मेरे वो सज़ा ही नहीं
*शरीक़ कैफ़ी*
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