उन्हें ठहरे समुंदर ने डुबोया
जिन्हें तूफ़ाँ का अंदाज़ा बहुत था
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
जाने क्यूँ इक ख़याल सा आया
मैं न हूँगा तो क्या कमी होगी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
इसी ख़याल से पलकों पे रुक गए आँसू
तिरी निगाह को शायद सुबूत-ए-ग़म न मिले
वसीम बरेलवी
जिसे हम ज़िंदगी भर याद रखना चाहते थे
बहुत तेज़ी से वो चेहरा पुराना पड़ रहा है.
शरीक़ कैफ़ी
इबादत का तुझको सलीक़ा नहीं है,
दुआओं में अपनी असर ढूँढता है।
शाकिर देहलवी
सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का
वो यूँ शीशे को हर पत्थर से टकराया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की
दिल चाहता न हो तो ज़बाँ में असर कहाँ
अल्ताफ़ हुसैन हाली
बेकसो-मजबूर इंसां को दुआ देता हूं मैं,
वार करता है कोई तो मुस्करा देता हूं मैं
अज्ञात
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