तां दुर्गां दुर्गमां देवीं दुराचारविघातिनीम्।  नमामि भवभीतोऽहं संसारार्णवतारिणीम्।। 

ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे

मन्त्राणां मातृका देवी शब्दानां ज्ञानरूपिणी। 
ज्ञानानां चिन्मयतीता शून्यानां शून्यसाक्षिणी। 
यस्यां परतरं नास्ति सैषा दुर्गा प्रकीर्तिता।। 
तां दुर्गां दुर्गमां देवीं दुराचारविघातिनीम्। 
नमामि भवभीतोऽहं संसारार्णवतारिणीम्।। 

सब मन्त्रों में 'मातृका' (मूलाक्षर) रूप से रहने वाली, शब्दों में ज्ञान (अर्थ) रूप से रहने वाली, ज्ञानों में चिन्मयातीता, शून्यों में शून्यसाक्षिणी तथा जिनसे और कुछ भी श्रेष्ठ नहीं हैं, वे ही दुर्गा नाम से प्रसिद्ध हैं। उन दुर्विज्ञेय (जिसको जानना कठिन हो), दुराचार का नाश करने वाली और संसार-सागर से तारने वाली दुर्गा देवी को संसार से डरा हुआ मैं नमस्कार करता हूँ।

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