यूँ बरसती हैं तसव्वुर में पुरानी यादें

रोज़ मिलता है आपसा कोई,

वो मगर आपसा नहीं होता.

एहतराम इस्लाम

 

बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी, 

वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला

बशीर बद्र

 

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है

भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है।।

वसीम बरेलवी

 

अब कोई आए चला जाए मैं ख़ुश रहता हूँ

अब किसी शख़्स की आदत नहीं होती मुझ को

शाहिद ज़की

 

जंग हो जाए हवाओं से तो हर एक शजर

नरम शाख़ों को भी तलवार बना देता है

मंजूर हाशमी

 

धड़कते दिल को पत्थरों में ढूँढना तो चाहिए

कहीं ख़ुदा मिले हमें कोई ख़ुदा तो चाहिए

ज़ेब ग़ौरी

 

यूँ बरसती हैं तसव्वुर में पुरानी यादें

जैसे बरसात की रिम-झिम में समाँ होता है

क़तील शिफ़ाई

 

जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे

जान बाक़ी है मगर साँस रुकी हो जैसे

फ़ैज़ अनवर

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