जानता उस को हूँ दवा की तरह
चाहता उस को हूँ शिफ़ा की तरह
हक़ीर
है जिस्म सख़्त मगर दिल बहुत ही नाज़ुक है
कि जैसे आईना महफ़ूज़ इक चट्टान में है
अब्बास दाना
सुना है उस को मोहब्बत दुआएँ देती है
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे
क़तील शिफाई
एक तारीख़ ए मुक़र्रर पे तू हर माह मिले
जैसे दफ़्तर में किसी शख़्स को तनख़्वाह मिले
उमैर नजमी
वो वक़्त भी आता है जब आँखों में हमारी
फिरती हैं वो शक्लें जिन्हें देखा नहीं होता
अहमद मुश्ताक़
बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
बस इक दुआ में छूट गए हर दुआ से हम
आमिर उस्मानी
मैं बारिशों में बहुत भीगता रहा 'आबिद'
सुलगती धूप में इक छत बहुत ज़रूरी है
आबिद वदूद
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा ने कुछ दिखाई न दे
बशीर बद्र
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