मोहब्बत में कठिन रस्ते बहुत आसान लगते थे
पहाड़ों पर सुहुलत से चढ़ा करते थे हम दोनों।
हसन अब्बासी
तुझ से कुछ और त'अल्लुक़ भी ज़रूरी है मिरा
ये मोहब्बत तो किसी वक़्त भी मर सकती है।
अज़हर फ़राग़
पहले लगता था तुम ही दुनिया हो
अब ये लगता है तुम भी दुनिया हो ।
फ़हमी बदायूनी
मैं थोड़ा थोड़ा हर एक रास्ते पर बैठा हूँ
खबर नहीं है मुझे तू किस रास्ते से आएगा ।
शकील आज़मी
मेरा पिंजरा खोल दिया है तुम भी अजीब शिकारी हो
अपने ही पर काट लिए हैं मैं भी अजीब परिंदा हूँ।
तरकश प्रदीप
बोलता हूँ जो वो बुलाता है
तन के पिंजरे में उस का तोता हूँ
सिराज औरंगाबादी
ख़ूब मुश्किल है पर आसान लिया जाता है
कितना हल्के में ये इंसान लिया जाता है
तरकश प्रदीप
मुझ से कहते नहीं बनता कि सितम कम कीजे
फिर न ऐसा हो किसी रोज़ मिरा ग़म कीजे।
तरकश प्रदीप
Login first to enter comments.