तेरे जाते ही ये हुआ महसूस
आइने मुस्कुराना भूल गए
अंजुम लुधियानवी
हम बहुत पछताए आवाज़ों से रिश्ता जोड़ कर
शोर इक लम्हे का था और ज़िंदगी भर का सुकूत
नोमान शौक़
मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है
अर्श मलसियानी
इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
इक समुंदर है मिरी तन्हाई
अहमद नदीम क़ासमी
हम गए थे उस से करने शिकवा-ए-दर्द-ए-फ़िराक़
मुस्कुरा कर उस ने देखा सब गिला जाता रहा
जोश मलीहाबादी
एक रिश्ता जिसे मैं दे न सका कोई नाम
एक रिश्ता जिसे ता-उम्र निभाए रक्खा
अक्स समस्तीपुरी
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