दिल सुलगता है तिरे सर्द रवय्ये से मिरा

तुझी पर कुछ ऐ बुत नहीं मुनहसिर 

जिसे हम ने पूजा ख़ुदा कर दिया 

मीर तक़ी मीर

 

मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल

हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतिज़ार है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

 

मिरी तो सारी दुनिया बस तुम्ही हो

ग़लत क्या है जो दुनिया-दार हूँ मैं

रहमान फ़ारिस

 

तुम तो दरवाज़ा खुला देख के दर आए हो

तुम ने देखा नहीं दीवार को दर होने तक

रहमान फ़ारिस

 

किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया

न इंतिहा ख़ुशी की है न इंतिहा मलाल की

इक़बाल अशहर

 

दिल सुलगता है तिरे सर्द रवय्ये से मिरा

देख अब बर्फ़ ने क्या आग लगा रक्खी है।

अनवर मसूद

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