।। बेवजह कुण्डी खट-खटाया करो ।।
दोस्तों से मिलते रहा करो,
उनकी थोड़ी खैरखबर भी रखा करो।
जाने कौन कितने अवसाद में जी रहा है,
पता नहीं कौन बस पलों को गिन रहा है।।
कभी निकलो अपने घरोदों से,
औरों के आशियानें में भी जाया करो।
कभी कभी अपने दोस्तों की कुण्डी,
तुम बेवजह ही खट-खटाया करो।
कभी यूं ही किसी के कंधे पर हाथ रख,
साथ होने का अहसास दिलाया करो।
कभी बिन मतलब लोगों से बतियाया करो,
बिना जज किये बस सुनते जाया करो।
कुछ टूटे मिलेंगे, कुछ रूठे मिलेंगे,
जिन्दगी से मायूस भी मिलेंगे।
बस कुछ प्यारी सी उम्मीदें,
कभी उनके दिलों में जगाया करो।
ऐसा न हो फिर वक्त ही न मिले,
मुट्ठी की रेत की तरह लोग फिसलते रहे।
यूं वक्त-बेवक्त ही सही,
दोस्तों को गले तो लगाया करो।
।। कभी बेवजह कुण्डी खट-खटाया तो करो ।।
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